Archive for March 24, 2007
न हन्यते
नंदीग्राम में 100 से ज्यादा लोग मारे गये हैं, 200 अब भी लापता हैं. वहां महिलाओं के साथ सीपीएम के कैडरों ने बलात्कार किया. बच्चों तक को नहीं छोड़ा गया है. यह दस्तावेज़ी फ़िल्म किसानों के इसी संघर्ष के बारे में है. यह फ़िल्म नंदीग्राम के ताज़ा नरसंहार से पहले बनायी गयी थी. फ़िल्म देखने के लिए यहां क्लिक करें. कुछ और फ़िल्में देखने के लिए यहां क्लिक करें.
न हन्यते
नंदीग्राम में 100 से ज्यादा लोग मारे गये हैं, 200 अब भी लापता हैं. वहां महिलाओं के साथ सीपीएम के कैडरों ने बलात्कार किया. बच्चों तक को नहीं छोड़ा गया है. यह दस्तावेज़ी फ़िल्म किसानों के इसी संघर्ष के बारे में है. यह फ़िल्म नंदीग्राम के ताज़ा नरसंहार से पहले बनायी गयी थी. फ़िल्म देखने के लिए यहां क्लिक करें. कुछ और फ़िल्में देखने के लिए यहां क्लिक करें.
नंदीग्राम नरसंहार के साक्ष्य
गुजरात में जब दंगे हुए तो उसके पहले नरेंद्र मोदी ने नरसंहार की पूरी योजना बनायी थी और इसकी तैयारी कई महीनों से चल रही थी. नंदीग्राम पर आज एक जांच टीम की रिपोर्ट आयी है, जिसने यह कहा है कि नंदीग्राम के नरसंहार की पूरी तैयारी पहले से चल रही थी और सरकार में बैठे उच्चाधिकारियों के स्तर पर इसकी पूरी योजना बनायी गयी थी. ऐसी स्थिति में उन
अधिकारियों को मुख्यमंत्री बुद्धदेव की अनुमति भी लेनी पडी़ होगी जो गृह मंत्रालय देखते हैं. इसमें कहा गया है कि जिस तरह की घटनाएं 14 मार्च को घटीं और उसके बाद जो हुआ उसको देखें तो सीपीएम और पुलिस की मिलीभगत साफ़ दिखती है. रिपोर्ट में पीड़ितों से बातचीत दी गयी है और यह बताया गया है कि किस तरह की कयामत टूट पड़ी थी नंदीग्राम पर. इसे तैयार किया है एडीपीआर, पीबीकेएमएस आदि ने . इन संगठनों ने कोलकाता उच्च न्यायालय में इस मामले में 15 मार्च को एक याचिका दाखिल की थी जिस पर कार्रवाई हो रही है.
पूरी रिपोर्ट डाउनलोड करें
भगत सिंह की याद और सीपीएम के गुंडे : पटना प्रसंग
रेयाज़-उल-हक़
आज भगत सिंह जन्मशताब्दी आयोजन समिति, पटना ने भगत सिंह के शहादत दिवस पर एक कार्यक्रम किया. गया तो था कि भगत सिंह पर शायद कुछ सार्थक मिलेगा, मगर जो सामने आया वह था सीपीएम की गुंडई. कार्यक्रम के दौरान संचालक ( जो सीपीएम से जुडे़ हुए हैं) ने एआइडीएसओ के एक वक्ता को बुलाया, जो समिति का घटक है. उसने बोलते हुए नंदीग्राम और सिंगुर में हुई किसानों की हत्याऒं और पुलिसिया कार्रवाई का ज़िक्र बिना सीपीएम का नाम लिये किया. उसका नंदीग्राम का ज़िक्र करना था कि वहीं बैठे सीपीएम के लोगों ने चीख-पुकार मचानी शुरू कर दी. कुछ दौड़ते हुए आये और लगभग गाली-गलौज करते हुए वक्ता से माइक छीन लिया, उसके साथ धक्कामुक्की की और अनधिकृत रूप से बोलने लगे. उनकी भाषा यह थी-ममता के दलालों को बोलने नहीं दिया जायेगा, ज़मींदारों को बोलने नहीं दिया जायेगा.
लोगों ने बीच बचाव किया और उसके बाद संचालक ने प्रो नवल किशोर चौधरी को बुलाया. मगर उनके हाथ से माइक छीन कर फिर सीपीएम के उन्हीं लोगों ने गालीगलौज शुरू कर दी और भाषण देना शुरू कर दिया. जब यह सब हो रह था, आयोजन समिति चुपचाप थी.
आखिरकार उस वक्ता को फिर नहीं बोलने दिया गया. इस मांग पर कि समिति की ओर से संचालक इस तरह अनधिकृत लोगों द्वारा माइक छीने जाने की निंदा करें, संचालक ने इनकार कर दिया. यही नहीं वे बार-बार जाकर उन गुंडों से गलबांही डाल कर बतियाते रहे और मुदित होते रहे.
और इसके बाद भगत सिंह पर ज़ोरदार नारे लगे, गीत गाये गये. प्रहसन समाप्त हुआ.
पर बात समाप्त नहीं हुई. पहली बात तो यह कि क्या किसी को इसका अधिकार नहीं कि वह अपनी बात रखे? अगर वक्ता ने सीपीएम का नाम लिया होता तो बात समझ में आनेवाली थी (हालांकि तब भी माइक छीन लेना और बोलने न देना, कहीं से भी उचित न था), मगर इसके बगैर ही सीपीएम के गुंडों का इस तरह बौखला जाना क्या यह नहीं दिखाता कि वे किस तरह का समाज बनाना चाहते हैं? वे कितने अलगाव में हैं और खुद को कितना घिरा हुआ पाते हैं. यह तो पूरी तरह शासकवर्गीय चरित्र है, किसी को बोलने न देना और उसकी जगह खुद शोर मचाने लग जाना ताकि समांतर आवाज़ दब जाये.
अरुण मिश्रा आदि माकपाई गुंडों ने जो किया वह तो कडी़ भर्त्सना का विषय है ही, आयोजन समिति के ऊपर भी इसने कुछ सवालिया निशान लगाये हैं. अगर समिति द्वारा अधिक्रित तौर पर बुलाये गयी एक वक्ता से माइक छीन लिया जाता है, और माइक छीननेवाले अनधिकृत लोग अगर खुद बोलने लग जाते हैं और अगले वक्ता के साथ भी यही होता है तो समिति और संचालक की क्या जिम्मेवारी बनती है? वह इस व्यवहार की निंदा करे. मगर यहां तो माइक छीन लिये जाने में संचालक का छुपा हुआ हाथ दिख रहा था. कायदे से होना चाहिये था कि फिर से वक्ता को बोलने दिया जाता और अगर किसी को विरोध जताना था तो वह बाद में आता. मगर ऐसा नहीं हुआ.
और समिति ने क्या कहा? इससे जुडे़ लोगों का कहना था कि वक्ता ने अपना नाम कुछ समय पहले ही दिया, जबकि उनसे काफ़ी पहले से कहा जा रहा था? मगर आखिर यह कह कर समिति साबित क्या करना चाह्ती है? क्या यह कि माइक छीन लिया जाना सही था?
और ममता की दलाली? हमारे माननीय माकपाई बंधु क्या बतायेंगे कि उन्होंने नंदीग्राम में जिन 160 लोगों को मारा है और जिन 800 लोगों को ‘गायब’ कर दिया है, वह किनकी दलाली में किया? क्या वे अमेरिकी कंपनियों और एमएनसीज की दलाली में ही अपने लोगों पर गोलियां नहीं चला रहे हैं?
समिति पर इससे पहले भी कई आरोप लगते रहे हैं. इसने गत सात-आठ महीनों में जितने बैनर-पोस्टर बनवाये उनमें भगत सिंह के उद्धरणों को इस तरह तोड़-मरोड़ कर पेश किया गया है कि वे भगत सिंह की एक अलग ही और विकृत छवि पेश करते हैं. इस पर पूछने पर समिति के लोग बराबर कहते रहे कि ये बैनर-पोस्टर गलती से बन गये. मगर उनका बराबर इस्तेमाल होता रहा. वे कभी बदले नहीं गये.
और आलोकधन्वा ने आज शाम इसी कार्यक्रम के उद्घाटन में इसी समिति के गठन को बिहार के पिछले एक दशक के इतिहास में सबसे बडी़ घटना बताया.
तो दोस्तों क्या यह सब यूं ही चलता रहेगा? क्या कोई कुछ नहीं बोलेगा? किसी को कुछ नहीं बोलने दिया जायेगा? और वह भी भगत सिंह के शहादत दिवस पर?
क्या इससे बडा़ दुखद संयोग और क्या होगा? बांग्ला कवि विश्वजीत सेन कहते है- यह तो भगत सिंह की विरासत पर कलंक है. भगत सिंह की याद में सभा हो और इस तरह का व्यवहार हो…
दूसरा सिंगूर न बन जाये लोहंडीगुड़ा
आलोक देश के उन प्रतिबद्ध और संवेदनशील पत्रकारों में से हैं जिनके लिए कोई घटना सिर्फ़ घटना नहीं होती, प्रक्रियाओं का एक समुच्च्य होती है. आलोक अपने समय के प्रति बेहद चिंतित रहनेवाले लेखक हैं. बीबीसी के लिए लिखते रहे हैं. अभी बस्तर पर लिख रहे हैं. हाशिया के पाठकों के लिए भी अब निरंतर लिखेंगे. इस सिलसिले में पहली कडी़, बस्तर से ही. इसमें हम सिंगुर और नंदीग्राम की आहटें सुन सकते हैं.
लोहण्डीगुड़ा से लौटकर आलोक प्रकाश पुतुल
बस्तर के लोहण्डीगुड़ा में टाटा स्टील की भट्ठियां चाहे जब जलें, इस इलाके के गांव अभी से धधक रहे हैं. टाटा की प्रस्तावित स्टील प्लांट के लिए बंदूक की नोक पर ही सही भूविस्थापितों की कथित ग्रामसभा के बाद लगता था कि अब टाटा का रास्ता साफ हो गया है लेकिन विरोध के स्वर लगातार तेज होते जा रहे हैं. टाटा स्टील प्लांट के पक्ष में सब कुछ ठीक-ठाक होने के लाख दावे किये जायें, लेकिन सच यह है कि जगदलपुर से लोहंडीगुड़ा तक टाटा के खिलाफ सिंगुर जैसा माहौल बन रहा रहा है, जहां लोग मरने-मारने के लिए तैयार हैं.
सरकार की पहल पर पिछले साल 20 जुलाई और 3 अगस्त को भी लोहंडीगुड़ा के 10 ग्राम पंचायतों की ग्रामसभा करवायी गयी थी, लेकिन गांव वालों की मानें तो ऐसी कोई ग्रामसभा गांव में हुई ही नहीं. ग्रामसभा के दिन इलाके को पुलिस छावनी में बदल दिया गया और प्रस्तावित टाटा स्टील प्लांट का विरोध करनेवालों को पहले पुलिस ने अपनी हिरासत में ले लिया.कुम्हली, छींदगांव के एक चौराहे पर अपने बुजुर्ग साथियों के साथ अपना दुख-सुख बांटते हुए गांव के नड़गू कहते हैं-‘ग्रामसभावाले दिन हमें बुलाया गया और एक-एक परची दे कर एक डब्बे में डालने को कह दिया गया. इसके बाद हमारे अंगूठे के निशान ले लिये गये.’
नड़गू दावा करते हैं कि उन्हें टाटा के प्रस्तावित संयंत्र की स्थापना की शर्तों को लेकर कोई बात नहीं बतायी गयी और न ही उनकी कोई राय ली गयी.
गांव के ही बेनूधर बताते हैं कि गांव में सबको बताया गया कि जिनके भी नाम वोटर लिस्ट में हैं, वे सभी लोग ग्राम सभावाली जगह पर पहुंच जायें. इसके बाद वोट डालने की तरह पूरी ग्राम सभा की प्रक्रिया निपटा दी गयी. इस वोट डालने की कार्रवाई में वैसे लोग भी शामिल थे, जिनकी जमीन इस प्रस्तावित स्टील प्लांट के लिए लेने का कोई प्रस्ताव ही नहीं था. गांव के बुजुर्ग इस मुद्दे पर एकजुट हैं और उनकी सीधी मांग है कि टाटा स्टील सबसे पहले तो प्रस्तावित 2161 हेक्टेयर जमीन में से जो कृषि भूमि है, उसका उचित मुआवजा तय करे, प्रभावितों को नौकरी दे और इन सब से बढ़ कर यह कि इस प्रस्तावित स्टील प्लांट में उन्हें भी शेयर दे. प्रभावित गांववालों ने कथित ग्रामसभा के समय ही अपनी 13 सूत्री मांग सौंप दी थीं, लेकिन सरकार शायद इन मांगों पर गौर करने के मूड में नहीं है और अब जमीन अधिग्रहण करने की प्रक्रिया भी शुरू हो गयी है. जाहिर है, गांववाले सरकार के इस कदम से नाराज हैं और आक्रोशित भी और आक्रोश भी ऐसा वैसा नहीं. लोहंडीगुड़ा विद्रोह में अपनी जान देनेवाले अजंबर सिंह ठाकुर के बेटे बल्देव सिंह ठाकुर अपने सफेद बालों में उंगलिया फिराते हुए कहते हैं- ‘जान दे
देंगे लेकिन टाटा को जमीन नहीं देंगे.’
सिंगूर से आनेवाली बयार को महसूस करनेवालों के लिए यह अनुमान लगाना मुश्किल नहीं है कि बलदेव सिंह की चेतावनी के निहितार्थ क्या-क्या हो सकते हैं.
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भूमि अधिग्रहण प्रक्रिया प्रारंभ
जिला प्रशासन द्वारा लोहंडीगुड़ा क्षेत्र में टाटा स्टील प्लांट के लिए भूमि अधिग्रहण की कार्यवाही प्रारंभ कर दी गयी है. रायपुर से प्रकाशित एक हिंदी दैनिक में धारा 4 के प्रकाशन के उपरांत दाबापाल, बेलयापाल, धुरागांव व छिंदगांव में भूमि अधिग्रहण की कार्रवाई प्रारंभ हो गयी है. दाबापाल में 213.59 हेक्टेयर, बेलर 213.95 हे. बेलियापाल में 141.68 हे., धुरागांव में 276.45 हे. व छिंदगांव 57.29 हे. भूमि के अधिग्रहण के लिए धारा-4 का प्रकाशन किया गया है. अनुसूचित क्षेत्र होने के कारण यह माना जा रहा है कि प्रदेश के राज्यपाल द्वारा भूमि अधिग्रहण की कार्रवाई को स्वीकृति प्रदान की गयी होगी.
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क्या कहता है टाटा
सीमित विकल्पों के बावजूद इस बात का पूरा ध्यान रखा गया कि आवश्कताओं को न्यूनतम स्तर पर रख कर, भूखंड को सही स्वरूप देकर एवं भूखंड की सीमा के यथोचित निर्धारण के जरिये विस्थापन को न्यूनतम किया जाये.
इसके अनुरूप ही संयंत्र, जलाशय, स्लैग प्रबंधन स्थल एवं आवासीय क्षेत्र से संबंधित जरूरतों को पूरा करने के लिए कुल 2161 हेक्टेयर जमीन के लिए आवेदन किया गया।
यद्यपि परियोजना से प्रभावित परिवारों या लोगों की पहचान के लिए सर्वेक्षण किया जाना अभी बाकी है, खसरा अभिलेखों एवं बीपीएल-सर्वेक्षण के आधार पर प्रोजेक्ट से प्रभावित होनेवाले लोगों के संबंध में एक आकलन किया गया है. उपलब्ध आंकड़ों के प्रारंभिक विश्लेषण से यह अनुमान होता है कि अपनी 75 % से ज्यादा जमीन से वंचित होनेवाले प्रभावित जमीन मालिकों की संख्या लगभग 840 है और प्रभावित होनेवाले घरों की संख्या लगभग 225 है. यह पुनर्स्थापना एवं पुनर्वास पैकेज छत्तीसगढ़ सरकार के पुनर्वास विभाग की मॉडल नीति 2005 के दिशानिर्देशों को ध्यान में रखते हुए तैयार किया गया है.
पुनर्स्थापना एवं पुनर्वास का यह पैकेज माननीय मुख्यमंत्री, छत्तीसगढ़ के समक्ष विगत 15 दिसंबर, 2005 को एवं जिला पुनर्वास समिति के सदस्यों के समक्ष 26 दिसंबर, 2005 को प्रस्तुत किया गया था.
जिला पुनर्वास समिति के सुझाव को ध्यान में रखते हुए, प्रशिक्षण एवं नियोजन से संबंधित प्रावधानों की यथासंभव व्याख्या की गयी है.
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जमीन का मुआवजा
भू-अधिग्रहण कानून के प्रावधानों के अनुरुप मुआवजा जिसमें तोषण, ब्याज तथा छत्तीसगढ़ सरकार की पुनर्वास नीति, 2005 के अनुसार अनुग्रह राशि भी सम्मिलित है.
ऊसर जमीन- रु 50,000 प्रति एकड़, एकल फसलवाली असिंचित जमीन- रु. 75,000 प्रति एकड़, दोहरी फसलवाली सिंचित जमीन- रु. 100,000 प्रति एकड़.
(पैनोस साउथ एशिया अध्ययन का हिस्सा)
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