Archive for April 20, 2007
वसंत की गवाही
कुछ शब्द
उनके लिए
जो नंदीग्राम में मार दिये गये
कि मैं गवाह हूं उनकी मौत का.
मैं गवाह हूं कि नयी दिल्ली, वाशिंगटन
और जकार्ता की बदबू से भरे गुंडों ने
चलायीं गोलियां
निहत्थी भीड़ पर
अगली कतारों में खड़ी औरतों पर.
मैं गवाह हूं उस खून का
जो अपनी फसल
और पुरखों की हड्डी मिली अपनी जमीन
बचाने के लिए बहा.
मैं गवाह हूं उन चीखों का
जो निकलीं गोलियों के शोर
और राइटर्स बिल्डिंग के ठहाकों को
ध्वस्त करतीं.
मैं गवाह हूं
उस गुस्से का
जो दिखा
स्टालिनग्राद से भागे
और पश्चिम बंगाल में पनाह लिये
हिटलर के खिलाफ.
मैं गवाह हूं
अपने देश की भूख का
पहाड़ की चढ़ाई पर खडे
दोपहर के गीतों में फूटते
गड़ेरियों के दर्द का
अपनी धरती के जख्मों का
और युद्ध की तैयारियों का.
पाकड़ पर आते हैं नये पत्ते
सुलंगियों की तरह
और होठों पर जमी बर्फ साफ होती है.
यह मार्च
जो बीत गया
आखिरी वसंत नहीं था
मैं गवाह हूं.
Recent Comments