जनता के अधिकारों का क्या हो?

May 20, 2007 at 8:57 pm 1 comment

छत्तीसगढ़ लोक स्वातंत्र्य संगठन के प्रादेशिक महासचिव व राष्ट्रीय उपाध्यक्ष डा विनायक सेन को छत्तीसगढ पुलिस ने पिछले दिनों यह कह कर गिरफ़्तार कर लिया कि उनके संबंध नक्सलियों से हैं. इसकी निंदा देश भर के जाने-माने लोगों ने की है जिनमें अरुंधति राय, प्रभाष जोशी, मेधा पाटकर, निर्मला देशपांडे आदि शामिल हैं. हम इसे एक मानवाधिकार कार्यकर्ता के कार्य को दायरों में समेटने और सरकार के लिए एक आरामदेह स्थिति कायम करने के कदम के रूप में देखते हैं. इसी सिलसिले में प्रस्तुत है रायपुर से प्रकाशित देशबंधु समाचार पत्र का संपादकीय, आभार के साथ.

जनाधिकार : संवाद की जरूरत

छत्तीसगढ़ सरकार फिलहाल इस खुशफहमी में रह सकती है कि डॉ. विनायक सेन को गिरफ्तार कर उसने कोई बड़ा तीर मार लिया है। लेकिन कड़वी सच्चाई यही है कि इस कदम से सरकार की साख में गिरावट ही आई है। नक्सल समस्या का समाधान खोजने में उसकी असफलता भी इस तरह से उजागर हो रही है। जून 2005 याने आज से ठीक दो साल पहिले छत्तीसगढ़ सरकार ने सलवा जुडूम अभियान प्रारंभ किया था। उसी शृंखला में उसने संदिग्ध ख्याति प्राप्त ‘सुपरकॉप’ केपीएस गिल को भी नक्सल विरोधी अभियान के लिए सलाहकार नियुक्त किया था। संघ परिवार से ताल्लुक रखने वाले रिटायर्ड पुलिस अधिकारियों की सेवाएं भी राज्य ने ली थीं। लेकिन इन सबका क्या हुआ, यह सबके सामने है। सलवा जुडूम पूरी तरह विफल हो चुका है, और केपीएस गिल ही नहीं, उनके हॉकी मित्र तथा पूर्व मुख्य सचिव आरपी बगई भी सरकार को कोसते नहीं थक रहे हैं। अपने मनपसंद पत्रकारों को जांच कमेटी में शामिल करने के बाद भी एर्राबोर हत्याकांड की जांच अब तक कहीं नहीं पहुंच सकी है। इस बीच एक ओर नक्सली हिंसा की खबरें, दूसरी ओर फर्जी मुठभेड़ में निरीह व्यक्तियों को मार कर गड़ा देने की वारदातें और तीसरी तरफ नागा और मिजो बटालियनों के अत्याचार के प्रकरण आए दिन प्रकाश में आ रहे हैं। इसके बावजूद सरकार तथा पुलिस न तो गलतियां स्वीकार करने, न ही अपनी कार्यनीति में बदलाव लाने के लिए तैयार दिख रहे हैं। डॉ. विनायक सेन को गिरफ्तार कर सरकार ने अपनी एकांगी सोच का ही परिचय दिया है। डॉ. सेन छत्तीसगढ़ लोक स्वातंत्र्य संगठन के प्रादेशिक महासचिव व राष्ट्रीय उपाध्यक्ष हैं। एक सुयोग्य चिकित्सक के रूप में वे जनसामान्य को बेहतर चिकित्सा सुविधा मिले, इस मिशन पर लगातार काम करते रहे हैं, फिर चाहे सेवाग्राम हो या दल्लीराजहरा का शहीद अस्पताल या बिलासपुर के गांवों में जनस्वास्थ्य अभियान। छत्तीसगढ़ में वे पिछले पच्चीस साल से मानव अधिकारों के लिए निरंतर काम करते रहे हैं। उनके विचारों से अथवा कार्यप्रणाली से किसी को असहमति हो सकती है, व्यवस्था व तंत्र को उनकी सक्रियता से तकलीफ भी पहुंच सकती है, लेकिन इस वजह से वे अपराधी नहीं हो जाते। देश के एक प्रमुख व प्रभावशाली मानव अधिकार संगठन के कार्यकर्ता होने के नाते वे नक्सलियों के संपर्क में हैं, इस आधार पर उन्हें अपराधी मान लेना एक पूर्वाग्रह ही कहा जा एगा। यह याद रखने की जरूरत है कि देश इस वक्त अभूतपूर्व सामाजिक संक्रमण के दौर से गुजर रहा है। देश का कोई भी हिस्सा नहीं है जहां स्थापित व्यवस्था के विरुध्द जनता का गुस्सा न उबल रहा हो। सरकारों की विश्वसनीयता आज अपने निम्नतर स्तर पर है। कितनी सारी घटनाएं हाल में ही घटी हैं। ऐसे में संवेदी समाज की जिम्मेदारी पहले से कहीं ज्यादा बढ़ गई है। पीयूसीएल और पीयूडीआर ही नहीं अनेकानेक संगठन हैं जो सरकार और जनता के बीच हुक्मरानों और जनआकांक्षाओं के बीच पुल बनाने का काम कर रहे हैं। अगर गैर सरकारी स्तर पर संवाद कायम करने की, स्थितियों को समझने की, उनका विश्लेषण प्रस्तुत करने की और अंतत: समाधान सुझाने की कोशिशें न हों तो सरकार और जनता अपने ही विचारों तथा उनसे उपजे निर्णयों के कैदी होकर रह जाएंगे। इसका दुष्परिणाम एक गहरी और लंबी अराजकता में जाकर हो सकता है। राजाओं और तानाशाहों के खिलाफ दुनिया में बहुत सी लड़ाइयां हुई हैं, लेकिन निर्वाचित सरकारों से उम्मीद की जाती है कि वे इतिहास से सबक लें और जनता की आवाज सुनें। छत्तीसगढ़ सरकार को अपना कदम वापस लेते हुए डॉ. सेन को अविलंब रिहा करने के साथ-साथ जनाधिकारों की रक्षा के लिए लोकतांत्रिक प्रक्रिया कायम रहने को भी सुनिश्चित करना चाहिए।

साथ में यह भी

सामाजिक कार्यकर्ता राज्यपाल व मुख्यमंत्री से मिलेंगे

विनायक सेन के समर्थन में, कविता श्रीवास्तव, हर्षमंदर, अजीत भट्टाचार्जी,
प्रभाष जोशी, अरुण खोटे शामिल होंगे।
रायपुर (छत्तीसगढ़‌)। पीयूसीएल के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष डॉ. विनायक सेन की गिरफ्तारी को लेकर राज्यपाल और मुख्यमंत्री से मिलकर विरोध दर्ज कराने सामाजिक कार्यकर्ता और पूर्व आईएएस हर्षमंदर, पीयूसीएल की राष्ट्रीय सचिव कविता श्रीवास्तव पहुंच चुके हैं। कल प्रख्यात पत्रकार अजीत भट्टाचार्जी और अरुण खोटे दलित मानवाधिकार के राष्ट्रीय सदस्य राजधानी पहुंच रहे हैं।
कल राज्यपाल से मिलने का समय संगठन को मिल गया है। बताया जाता है कि संगठन की ओर से कल 12 बजे का समय मुख्यमंत्री से मांगा गया है, जिसकी स्वीकृति बाकी है।
संगठन के राज्य ईकाई के अध्यक्ष राजेन्द्र सायल ने बताया कि कल गांधीवादी नेता निर्मला देशपांडे के भी पहुंचने की संभावना है। उन्होंने बताया कि डॉ. विनायक सेन के घर की तलाशी के बाद पुलिस का झूठ उजागर हो गया है। उनके घर में कोई सबूत हासिल नहीं कर पाई है। घर से जो किताबें और आलेख जब्त किए गए हैं, वे प्रतिबंधित नहीं हैं। नक्सली नेता नारायण सान्याल का जेल से लिखा पोस्टकार्ड बरामद किया गया है, जिसमें उन्होंने अपने स्वास्थ्य की जानकारी दी है। यह पत्र जेल के माध्यम से ही आया है। एक अन्य कैदी का पत्र डॉ. सेन को मिला था, जिसमें जेल की बदहाली का जिक्र है। उन्होंने कहा कि मानवाधिकारी कार्यकर्ता के घर ऐसी चीजें मिलना स्वाभाविक है। उन्होंने कहा कि डॉ. सेन के खिलाफ जन सुरक्षा अधिनियम और गैर कानूनी गतिविधियां निरोधक कानून के तहत कार्रवाई की गई है। इस कानून को रद्द करने के लिए संगठन अपनी लड़ाई और तेज करेगा।
उन्होंने मांग की है कि पुलिस के पास इस बात का कोई सबूत होता भारतीय दंड प्रक्रिया संहिता की धाराओं के तहत कार्रवाई करे।

देशबंधु की खबर, साभार

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  • 1. बजार वाला  |  May 21, 2007 at 1:13 am

    baaki sab to thik hai lekin arun khote ki bhoomika par sandeh hai.

    Reply

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