Posts filed under ‘मेरी कविताएं’
वसंत की गवाही
कुछ शब्द
उनके लिए
जो नंदीग्राम में मार दिये गये
कि मैं गवाह हूं उनकी मौत का.
मैं गवाह हूं कि नयी दिल्ली, वाशिंगटन
और जकार्ता की बदबू से भरे गुंडों ने
चलायीं गोलियां
निहत्थी भीड़ पर
अगली कतारों में खड़ी औरतों पर.
मैं गवाह हूं उस खून का
जो अपनी फसल
और पुरखों की हड्डी मिली अपनी जमीन
बचाने के लिए बहा.
मैं गवाह हूं उन चीखों का
जो निकलीं गोलियों के शोर
और राइटर्स बिल्डिंग के ठहाकों को
ध्वस्त करतीं.
मैं गवाह हूं
उस गुस्से का
जो दिखा
स्टालिनग्राद से भागे
और पश्चिम बंगाल में पनाह लिये
हिटलर के खिलाफ.
मैं गवाह हूं
अपने देश की भूख का
पहाड़ की चढ़ाई पर खडे
दोपहर के गीतों में फूटते
गड़ेरियों के दर्द का
अपनी धरती के जख्मों का
और युद्ध की तैयारियों का.
पाकड़ पर आते हैं नये पत्ते
सुलंगियों की तरह
और होठों पर जमी बर्फ साफ होती है.
यह मार्च
जो बीत गया
आखिरी वसंत नहीं था
मैं गवाह हूं.
वसंत की गवाही
कुछ शब्द
उनके लिए
जो नंदीग्राम में मार दिये गये
कि मैं गवाह हूं उनकी मौत का.
मैं गवाह हूं कि नयी दिल्ली, वाशिंगटन
और जकार्ता की बदबू से भरे गुंडों ने
चलायीं गोलियां
निहत्थी भीड़ पर
अगली कतारों में खड़ी औरतों पर.
मैं गवाह हूं उस खून का
जो अपनी फसल
और पुरखों की हड्डी मिली अपनी जमीन
बचाने के लिए बहा.
मैं गवाह हूं उन चीखों का
जो निकलीं गोलियों के शोर
और राइटर्स बिल्डिंग के ठहाकों को
ध्वस्त करतीं.
मैं गवाह हूं
उस गुस्से का
जो दिखा
स्टालिनग्राद से भागे
और पश्चिम बंगाल में पनाह लिये
हिटलर के खिलाफ.
मैं गवाह हूं
अपने देश की भूख का
पहाड़ की चढ़ाई पर खडे
दोपहर के गीतों में फूटते
गड़ेरियों के दर्द का
अपनी धरती के जख्मों का
और युद्ध की तैयारियों का.
पाकड़ पर आते हैं नये पत्ते
सुलंगियों की तरह
और होठों पर जमी बर्फ साफ होती है.
यह मार्च
जो बीत गया
आखिरी वसंत नहीं था
मैं गवाह हूं.
प्रतिरोध
रेयाज़-उल-हक
अगर तुम गूंगे बना दिये जाओ
और कुछ न बोल सको
अगर तुमसे छीन ली जाये रोशनी
और सरका दिया जाये तुम्हारे सामने से
प्यारा बसंत
चुहचुहाती गरमी
गुलाबी सरदी
अगर तुम थका दिये जाओ
और सांस लेना भी
भारी पड़ने लगे
यह बहुत है
कि तुम्हारे हाथ में बची तुम्हारी उंगली
आरोप की तरह उठे
उठे अभियोगी उंगली की तरह.
मौन का खतरा
रेयाज़-उल-हक
रसोई में रखे बरतन भी
नहीं खनकते
न ही कूकती है कोयल
बौर लगे आम के झुरमुट में
इस मार्च की दोपहरी में
कैसा मौन है हर तरफ़ ?
सब चुप हैं
मानों कहीं कुछ नहीं हो रहा है
देखते हैं एक दूसरे की तरफ़
जैसे देखते हैं पत्थर
जैसे अखबार छप रहे हों
सादे के सादे रोज़
या हो गये हों गूंगे सब
यह सन्नाटा इतना नीला है
मानों बगदाद का हरा आसमान
धधक न रहा हो इन दिनों
मानों फ़लस्तीन की सड़कों पर
फूट न रहा हो लावा
मानों बलूचिस्तान महज़ एक
घरौंदा भर हो रेत का
बच्चों का बनाया गया
मानों ग्वांतनामो और अबु गरेब में
बसते हों घोंघे
और केंचुए
मानों छत्तीसगढ़ में
उजाड़ी न जा रही हों बस्तियां
क्यों चुप
चीखता है खस्सी भी
ज़बह किये जाते वक़्त
और सूअर भी फेंकता है हाथ-पांव
पहचानो इस मौन के खतरे को
यह तुम्हारी ज़िंदगी के सुर
छीन लेने को है.
मौन का खतरा
रेयाज़-उल-हक
रसोई में रखे बरतन भी
नहीं खनकते
न ही कूकती है कोयल
बौर लगे आम के झुरमुट में
इस मार्च की दोपहरी में
कैसा मौन है हर तरफ़ ?
सब चुप हैं
मानों कहीं कुछ नहीं हो रहा है
देखते हैं एक दूसरे की तरफ़
जैसे देखते हैं पत्थर
जैसे अखबार छप रहे हों
सादे के सादे रोज़
या हो गये हों गूंगे सब
यह सन्नाटा इतना नीला है
मानों बगदाद का हरा आसमान
धधक न रहा हो इन दिनों
मानों फ़लस्तीन की सड़कों पर
फूट न रहा हो लावा
मानों बलूचिस्तान महज़ एक
घरौंदा भर हो रेत का
बच्चों का बनाया गया
मानों ग्वांतनामो और अबु गरेब में
बसते हों घोंघे
और केंचुए
मानों छत्तीसगढ़ में
उजाड़ी न जा रही हों बस्तियां
क्यों चुप
चीखता है खस्सी भी
ज़बह किये जाते वक़्त
और सूअर भी फेंकता है हाथ-पांव
पहचानो इस मौन के खतरे को
यह तुम्हारी ज़िंदगी के सुर
छीन लेने को है.
फलस्तीन के बारे में एक छोटी सी भूमिका
रेयाज़-उल-हक
इसे नक्शे पर खोजने का मतलब है
खोजना खून और मांस के लोथड़े
जो सड़कों पर जम गये हैं
और बदबू दे रहे हैं.
शब्दकोशों में यह शब्द
एक अपमान की तरह आता है
दस्तावेज़ इसे दरसाते हैं
एक वेदना के रूप में
इतिहास निरंतर सिमटती जाती
किन्हीं लकीरों के बारे में बताता है.
मत खोजो
मत खोजो फलस्तीन को
बाहर
यह मौज़ूद है
फलस्तीनियों के दिमाग में
वहां पल रह है
यह एक स्वप्न की तरह
अंतहीन संघर्ष
और विजय के संकल्प के साथ
आज़ादी के लिए.
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